नई दिल्ली, विवेक तिवारी। जलवायु परिवर्तन, बढ़ता प्रदूषण और इंसानों के बढ़ते दखल के चलते प्रवासी प्रजातियों के जीवन के लिए खतरा बढ़ा है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से हाल ही में जारी की गई विश्व प्रवासी प्रजाति रिपोर्ट में दावा गया गया है कि कनवेंशन ऑन द कंजरवेशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीसीज ऑफ वाइल्ड एनिमल (CMS) में दर्ज प्रवासी प्रजातियों में 5 में से एक प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक पक्षियों के साथ प्रवासी मछलियों के लिए भी खतरा बढ़ा है। 97 प्रतिशत सूचीबद्ध प्रवासी मछलियां भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और खत्म होते वेटलैंड के चलते इस साल उत्तर भारत में आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या 25 फीसदी तक कम रही। वहीं कुछ पक्षियों ने तो भारत आना ही छोड़ दिया है।

समरकंद में हाल ही जारी की गई वर्ल्ड माइग्रेटरी स्पिसीज रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 30 वर्षों में CMS में सूचीबद्ध 70 प्रवासी प्रजातियों के अस्तिस्व पर संकट काफी बढ़ गया है। इन प्रजातियों में मिस्र का गिद्ध, स्टेपी ईगल और जंगली ऊंट शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 44 प्रतिशत प्रवासी प्रजातियों की आबादी में गिरावट आ रही है। जिस तरह से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है उसके चलते आने वाले दशकों में जैवविविधता कहीं अधिक प्रभावित होने की आशंका है। बढ़ते तापमान से ये प्रवासी जीव जल्दी, देर से या प्रवास न करने के लिए बाध्य हो सकते हैं। गौरतलब है कि ये प्रवासी जीव ज्यादातर प्रजनन के लिए प्रवास करते हैं। ऐसे में प्रवास न कर पाने पर इनकी संख्या कम होने या लिंगानुपात कम होने की समस्याएं देखने में आ सकती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अगर समय पर कदम उठाए गए तो इन प्रवासी जीवों की प्रजातियों को बचाया जा सकता है।

पिछले कुछ सालों में भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या घटी है। दिल्ली बर्ड फाउंडेशन के संस्थापक निखिल देवसरे कहते हैं कि पिछले साल की तुलना में इस साल उत्तर भारत में आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या लगभग 25 फीसदी कम रही। दरअसल हर साल भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी देखी जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बदलती जलवायु और खत्म होते वेटलैंड हैं। तेजी से हो रहे शहरीकरण के चलते इन पक्षियों के प्राकृतिक प्रजनन केंद्र खत्म हो रहे हैं। एक तरफ जहां वेटलैंड तेजी से सिकुड़ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ तापमान में हो रहे बदलाव के चलते भी इन जीवों के लिए सही समय पर प्रवास के लिए आना मुश्किल हो रहा है। दरअसल ये पक्षी हजारों मील का सफर कर भारत के कुछ खास हिस्सों तक आते हैं। ये जगह इनके प्राकृतिक प्रजनन केंद्र हैं। इन प्राकृतिक प्रजनन केंद्रों के खत्म होने से इन पक्षियों की संख्या और लिंगानुपात पर भी असर पड़ा है।

डीयू के आईपी कॉलेज के असिस्टटेंट प्रोफेसर और पक्षी विज्ञानी डॉक्टर नवीन कुमार तिवारी और उनके साथी लम्बे समय से भरतपुर, मथुरा और दिल्ली - एनसीआर में पक्षियों के व्यवहार में आने वाले बदलाव पर काम कर रहे हैं। तिवारी कहते हैं कि यूपी के इटावा, मैनपुरी में ग्रेटर नोएडा के धनौरी वेटलैंड में बड़ी संख्या में साइबेरियन क्रेन आते थे। पिछले कुछ सालों में इन पक्षियों ने यहां आना बंद कर दिया है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर में साइबेरियन क्रेन बड़ी संख्या में आते थे, लेकिन अब इनकी संख्या काफी घट चुकी है। मौसम में आए बदलाव के चलते इन पक्षियों के व्यवहार में ये बदलाव देखा गया है। दिल्ली और एनसीआर की बात करें तो गौरैया और सन बर्ड जैसी चिड़िया यहां दिखना लगभग बंद हो चुकी है। दसअसल ये चिड़िया झाड़ियों में रहती हैं। लेकिन दिल्ली एनसीआर में तेजी से हो रहे निर्माण के चलते इन चिड़ियों के प्राकृतिक आवास लगभग खत्म से हो रहे हैं। ऐसे में इन पक्षियों के प्रजनन पर भी असर पड़ा है। इस दिशा में सही समय पर कदम न उठाए गए तो आने वाले समय में इस तरह के पक्षी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएंगे।

पर्यावरणविद एवं प्रभारी वैज्ञानिक, यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रमुख डॉ. फैयाज खुदसर कहते हैं कि निश्चित तौर पर प्रवासी मछलियों के जीवन पर कई तरह से प्रभाव पड़ा है। जलवायु परिवर्तन के साथ ही इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि बहुत सी ऐसी मछलियों की प्रजातियां पालने के लिए विदेशों से लाई गईं जो पानी के साथ बह कर स्थानीय नदियों या जल स्रोतों तक पहुंच गईं। यहां इन मछलियों के चलते स्थानीय प्रजातियों के सामाने अस्तित्व का संकट खड़ा होगा। मानव गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन ने प्रवासी जीवों के जीवन को काफी प्रभावित किया है। दुनिया भर में मानवजनित पर्यावरणीय प्रभावों के चलते जैसे कि आवास का नुकसान, जहरीली दवाओं के उपयोग ने शिकारी प्रजाति के पक्षियों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिसमें लगभग 50 फीसदी प्रजातियों की आबादी घट रही है। कई तरह के संरक्षण के बावजूद दुनिया भर में शिकार करने वाले पक्षियों की संख्या में भारी गिरावट देखी जा रही है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) और बर्डलाइफ इंटरनेशनल के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 557 शिकारी प्रजातियों के पक्षियों में से 30 फीसदी को खतरे, लुप्तप्राय या गंभीर रूप से लुप्तप्राय माना जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि 18 प्रजातियां गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं, जिनमें फिलीपीन ईगल, हुडेड गिद्ध और एनोबोन स्कॉप्स उल्लू शामिल हैं।

बढ़ते तापमान से घट रही पक्षियों की प्रजनन दर

जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 50 वर्षों के दौरान जलवायु परिवर्तन ने दुनिया भर में पक्षियों को प्रभावित किया है। इसकी वजह से प्रवासी और बड़े पक्षियों के बच्चों की जन्म दर में गिरावट आई है। शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में पक्षियों की 104 प्रजातियों पर पिछले 50 वर्षों तक अध्ययन किया है। अध्ययन किए गए 56.7 फीसदी पक्षियों की प्रजनन दर में गिरावट देखी गई है। रिपोर्ट के मुताबकि जलवायु परिवर्तन के चलते पक्षियों की शारीरिक संरचना, वजन, इनके आवास, और पक्षियों की प्रजनन दर पर असर पड़ा है।

संयुक्त राष्ट्र की ओर से वर्ल्ड माइग्रेटरी स्पिसीज रिपोर्ट में सुझाव दिए गए हैं कि प्रवासी जीवों को बचाने के लिए कुछ कदम तुरंत उठाने की जरूरत है। जैसे प्रवासी प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण स्थलों की पहचान की जाए, उन जगहों की सुरक्षा, जुड़ाव और प्रभावी ढंग से प्रबंधन के लिए प्रयास तेज किए जाएं। उन प्रजातियों पर तत्काल ध्यान दिया जाए जो विलुप्त होने की कगार पर हैं या सबसे अधिक खतरे में हैं, जिनमें लगभग सभी सीएमएस-सूचीबद्ध मछली प्रजातियां शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन के साथ ही प्रकाश, ध्वनि, रासायनिक और प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के प्रयासों को बढ़ाया जाए। जो प्रजातियां विलुप्ती के कगार पर हैं उन्हें बचाने के लिए राष्ट्रीय और अतंरराष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाई जाए।