नई दिल्ली। अनुराग मिश्रा/विवेक तिवारी। कन्नड फिल्म अभिनेता ध्रुव सरजा हाल ही अपनी फिल्म के क्रू के साथ कश्मीर जा रहे थे। विमान कश्मीर के एयरस्पेस में दाखिल हुआ ही था कि यात्रियों को भयानक टर्बुलेंसमहसूस हुआ। विमान तेजी से नीचे गिरने लगा। विमान लगभग 4000 फीट तक नीचे गिरा, अभिनेता ने कहा कि ये सामने मौत देखने जैसा एहसास था। यूं तो खराब मौसम के चलते विमान में टर्बुलेंसहोना सामान्य घटना लगती है, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो जलवायु परिवर्तन के चलते टर्बुलेंसकी घटनाएं बढ़ी हैं। पूरी विमानन इंडस्ट्री को बदलते मौसम और बढ़ती गर्मी से कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के चलते आने वाले समय में उड़ानों के सामने कई तरह की मुश्किलें होंगी। 2050 के बाद उत्तर भारतीय हवाई क्षेत्र में एयर टर्बुलेंसकी की घटनाएं दोगुनी से अधिक होने की आशंका है। शोधकर्ताओं के मुताबिक एयर टर्बुलेंसकी घटनाएं बेहद ऊंचाई पर और बादल रहित हवा में होती हैं। ऐसे में इसका पहले से अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल है। आने वाले समय में उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्से में मार्च से मई के बीच, खास तौर पर प्री मानसून सीजन में, एयर टर्बुलेंसकी घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी।

इस अध्ययन में शामिल प्रोफेसर विलियम्स के मुताबिक आने वाले समय में यात्रियों को विमान में पूरे सफर के दौरान सीट बेल्ट बांधे रहनी पड़ सकती है। शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए जलवायु मॉडल सिमुलेशन का उपयोग किया। वो कहते हैं कि विमान में टर्बुलेंसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन एयर टर्बुलेंसविमान के लिए विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि इसे न तो रडार से देखा जा सकता है और न ही सेटेलाइट से। गर्म और तेज हवाएं, जिन्हें जेट स्ट्रीम के नाम से भी जानते हैं, वो इस टर्बुलेंसका मुख्य कारण होती हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते जेट स्ट्रीम बढ़ी हैं।

एविएशन इंजीनियरिंग एक्सपर्ट जयव्रत घोष कहते हैं कि निश्चित तौर पर जलवायु परिवर्तन का असर एविएशन इंडस्ट्री पर पड़ा है। दरअसल जलवायु परिवर्तन के चलते एक्सट्रीम वेदर इवेंट तेजी से बढ़े हैं। किसी पायलट को विमान उड़ाने के कुछ घंटे पहले उस रूट पर मौसम का हाल बताया जाता है जिसके आधार पर वो विमान उड़ाता है। लेकिन उड़ान के दौरान अचानक मौसम में बदलाव से पायलट की मुश्किल बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में कई बार विमान में टर्बुलेंसमहसूस होता है, कई बार बेहद खराब मौसम के चलते विमान को डाइवर्ट भी किया जाता है। इससे विमानों की टाइमिंग पर असर पड़ता है। वहीं क्लाइमेट चेंज के चलते गर्मी बढ़ी है। बेहद गर्मी में हवा हल्की हो जाती है। ऐसे में विमान को उड़ाने के लिए लम्बे रनवे की जरूरत होती है। विमान काफी दूरी तक दौड़ता है तब जाकर कहीं विमान को ऊपर उठाने लायक प्रेशर बन पता है। लेकिन कई ऐसे एयरपोर्ट हैं जहां रनवे छोटे हैं। ऐसी जगहों पर गर्मी के समय विमान को उड़ाने में काफी मुश्किल होती है। वहीं एयरलाइंस के लिए फ्यूल की कीमतें काफी महत्वपूर्ण होती हैं। बेहद गर्म मौसम में फ्लाइट को ठंडा करने के लिए या रनवे पर ज्यादा दूरी तक विमान दौड़ाने पर फ्यूल की खपत बढ़ जाती है। कुल मिला कर जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी एविएशन सेक्टर के लिए कई तरह की मुश्किलें पैदा कर रही है।

वायुमंडल में गर्मी बढ़ने में विमानों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। एविएशन एक्सपर्ट ऋषिकेश मिश्रा कहते हैं कि विमानों से वायुमंडल में काफी प्रदूषण होता है। गर्मी बढ़ने का एक कारण ये भी है। पर्यावरण एजेंसी यूबीए के अनुसार, जर्मनी से मालदीव की एक उड़ान एक तरफ से 8,000 किमी की दूरी तय करती है। उस उड़ान के चलते प्रति व्यक्ति पांच टन से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। हवाई जहाज जमीन से 35,00 से 5,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरते हैं। इस ऊंचाई का पृथ्वी के तापमान पर खासा प्रभाव पड़ता है। हवाई जहाज से निकलने वाले धुएं से बादलों का निर्माण हो सकता है, जो पृथ्वी को ठंडा और गर्म दोनों कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन विमानों से होने वाले प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए कई तरह की सख्ती कर रही है। इस संस्था की ओर से विमानन कंपनियों और नियामकों को विमानों से होने वाले प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए नीति तैयार करने को कहा गया है।

वर्तमान में अमेरिका में हवाई यातायात में 75% से अधिक देरी का कारण मौसम है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण तटीय बाढ़ और चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं, मौसम संबंधी देरी के कारण अधिक उड़ानें रोकी जा सकती हैं। गर्म वातावरण से उड़ान में अशांति भी बढ़ सकती है।

जलवायु परिवर्तन का इस 5 तरीकों से पड़ रहा है एविएशन इंडस्ट्री पर असर

बढ़ती गर्मी से उड़ानों के लिए बड़ी मुश्किल

ग्लोबल वार्मिंग के चलते बढ़ते तापमान से विमानों को उड़ान भरने में काफी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। गर्म हवा ठंडी हवा की तुलना में कम घनी होती है। जमीन पर गर्म तापमान के कारण हवाई जहाज को उड़ान भरने के लिए पर्याप्त लिफ्ट प्राप्त करना अधिक कठिन हो जाता है। ऐसे में विमान को बेहद गर्म मौसम में रनवे पर काफी दूर तक दौड़ना पड़ता है। ऐसे में छोटे एयरपोर्ट पर विमानों के लिए उड़ान भरना मुश्किल होता है। अगर बड़ा रनवे मिल भी जाए तो विमान की ईंधन की खपत बढ़ जाती है। गर्म तापमान उड़ान भरने के लिए वजन प्रतिबंध का कारण बन सकता है - जिसका अर्थ है कम यात्री और सामान। कुछ मामलों में, विमानों को पर्याप्त लिफ्ट उत्पन्न करने के लिए लंबी रनवे दूरी की आवश्यकता हो सकती है।

जलवायु परिवर्तन के कारण बिजली गिरने का खतरा बढ़ा

अमेरिका के कुछ हिस्सों, विशेषकर देश के पूर्वी हिस्से में भयंकर तूफान की संभावना बढ़ रही है। एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते अमेरिका में सालाना बिजली गिरने की घटनाओं में 12% की वृद्धि हो सकती है। बिजली गिरने से बड़े वाणिज्यिक विमानों में इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम और उपकरणों को नुकसान पहुंच सकता है।

बदलती जेट स्ट्रीम से लम्बा हो सकता है सफर

हाल के दशकों में, वैज्ञानिकों ने जेट स्ट्रीम में परिवर्तन देखा है - वायुमंडल में तेज हवा के झोंके जो गर्म और ठंडी हवा के बीच की सीमाओं के साथ पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ते हैं। शोध से पता चलता है कि हवा का पैटर्न बदलने से उत्तरी गोलार्ध में यात्रा के समय पर असर पड़ सकता है - संभवतः पश्चिम की ओर जाने वाली उड़ानें लंबी हो जाएंगी, जबकि पूर्व की ओर जाने वाली उड़ानों में कम समय लगेगा। ये परिवर्तन रूट शेड्यूलिंग और ईंधन के खर्च को प्रभावित कर सकते हैं।

बढ़ेगा एयर टब्रुलेंस

जेट स्ट्रीम के चलते ऊंचाई पर उड़ानों को तेज हवा के झोंकों का सामना करना पड़ता है। पिछले कुछ सालों में इसके मामले बढ़े हैं। जेट स्ट्रीम को ज्यादा खतरनाक इस लिए माना जा रहा है क्योंकि इसे पायलट देख नहीं पाते। ये रडार या सेटेलाइट द्वारा पता भी नहीं लगाया जा पाता है। सर्दियों के महीनों के दौरान साफ़ हवा में एयर टर्बुलेंसकी संभावना ज्यादा होती है। एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि 1979 और 2020 के बीच अमेरिका में एयर टर्बुलेंसके मामलों में 41% की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है।

बढ़ते तूफानों से तटीय हवाई अड्डों को खतरा बढ़ा

ग्लोबल वार्मिंग के चलते गर्मी बढ़ने से समुद्र में उफान आने से नियमित उच्च ज्वार और तटीय तूफान दोनों के दौरान तटीय बाढ़ की स्थिति बन जाती है। ऐसे में तटीय इलाकों में बने एयरपोर्ट पर विमानों का परिचालन मुश्किल हो जाता है।

भारत में हैं कुल 137 हवाई अड्डे

देश में कुल 137 हवाई अड्डों का प्रबंधन एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया करता है। इसमें 24 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे , 10 कस्टम हवाई अड्डे और 103 घरेलू हवाई अड्डे शामिल हैं। एएआई 2.8 मिलियन वर्ग समुद्री मील हवाई क्षेत्र में हवाई नेविगेशन सेवाएं प्रदान करता है। 2023 में 19 नवंबर को, भारत में एयरलाइंस ने 4,56,910 घरेलू यात्रियों को यात्रा करायी। महामारी की चपेट में आने के बाद से यह एक दिन में सबसे अधिक हवाई यातायात था। रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम के तहत 2023 में 60 नए आरसीएस मार्ग शुरू हुए। उड़ान के तहत 154 नए आरसीएस रूट प्रदान किए गए। उत्तर-पूर्व में 12 नए आरसीएस रूट शुरू हुए। 91 लाख से अधिक यात्रियों ने डिजी यात्रा की सुविधा का लाभ उठाया, 35 लाख से अधिक उपयोगकर्ताओं ने ऐप डाउनलोड किया।

देश में सिर्फ 6 एयरपोर्ट पर है जीरो विजिबिल्टी पर विमान उड़ाने की सुविधा

सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक देश के 6 हवाईअड्डों के रनवे पर बेहद कम दृश्यता में या CAT III श्रेणी के तहत विमान उड़ाने की सुविधा है। इन हवाअड्डों में दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, अमृतसर, बंगलुरू और कोलकाता शामिल हैं। देश में लगभग 4800 पायलट हैं जो CAT III श्रेणी में फ्लाइट उड़ाने के लिए ट्रेंड हैं।