एस.के. सिंह, नई दिल्ली। खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) ने हाल ही अर्जेंटीना में लिथियम खनन का समझौता किया है। लिथियम खनन के लिए किसी भारतीय कंपनी का यह पहला विदेशी समझौता है। फिलहाल भारत लगभग 70% लिथियम आयात चीन से करता है और ग्लोबल सप्लाई में चीन की हिस्सेदारी 80% है। लिथियम ही नहीं, इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाले ज्यादातर खनिजों के मामले में यही स्थिति है। इसमें अमेरिका और यूरोप के विकसित देश भी बहुत पीछे हैं। उत्सर्जन कम करने की बाध्यता के कारण सभी देशों को इनकी अहमियत समझ में आने लगी है, इसलिए इन खनिजों की सप्लाई चेन पर नियंत्रण की कोशिशें तेज हो गई हैं। चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में 2022 में मिनरल सिक्युरिटी पार्टनरशिप बना था, जिसका भारत भी हिस्सा है।

दरअसल, हाल के वर्षों तक चली पेट्रोलियम भंडारों पर नियंत्रण की रेस अब ‘बैटरी आर्म्स रेस’ में बदल गई है। कहा जाता है, 1938 में अमेरिका की स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी ने सऊदी अरब में कच्चे तेल का विशाल भंडार खोजा, तो उसके बाद 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट तत्कालीन सऊदी किंग अब्दुल अजीज से मिले और ऊर्जा के नए स्रोत के महत्व के बारे में बताया था। फिर तो विश्व राजनीति ऊर्जा के इस स्रोत (पेट्रोलियम) के इर्द-गिर्द घूमने लगी। ऊर्जा के स्रोत पर नियंत्रण के महत्व का अंदाजा इस बात से लगता है कि अमेरिका ने बीते 100 साल में कम से कम 25 एनर्जी एक्ट पारित किए। चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद शी जिनपिंग ने 2013 में पहला दौरा अफ्रीका का किया था। उसके बाद वे कई बार वहां जा चुके हैं। उनका अफ्रीका दौरा 68 साल पहले रूजवेल्ट के सऊदी दौरे की याद दिलाता है।

खनिजों के स्रोत अलग-अलग देशों में

इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) और ग्रिड बैटरी बनाने के लिए लिथियम, कोबाल्ट, निकल, मैंगनीज, कॉपर आदि की जरूरत पड़ती है। इन खनिजों के स्रोत अलग-अलग देशों में हैं और उन स्रोतों पर नियंत्रण की कोशिश हो रही है। अभी तक इस रेस में चीन आगे था। कोबाल्ट सबसे अधिक कांगो में है और वहां 70% माइनिंग ऑपरेशन पर चीन का नियंत्रण है। चीन ने जिम्बॉब्वे में लिथियम का खनन शुरू किया है। आज दुनिया का 6% लिथियम भंडार भी चीन के पास नहीं, लेकिन 60% लिथियम रिफाइनिंग क्षमता उसके पास है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के अनुसार, तीन-चौथाई लिथियम आयन बैटरी चीन बनाता है। बैटरी में इस्तेमाल होने वाले 70% कैथोड और 85% एनोड चीन में बनते हैं। लिथियम, कोबाल्ट और ग्रेफाइट की आधी से ज्यादा प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग क्षमता चीन में है।

विश्व स्तर पर देखें तो ऊर्जा से होने वाले उत्सर्जन का 15% सड़क परिवहन से होता है। इसलिए सभी देश ईवी पर फोकस कर रहे हैं। आईईए के ‘ग्लोबल ईवी आउटलुक 2023’ के मुताबिक वर्ष 2022 में 60% मार्केट शेयर लिथियम निकल मैंगनीज कोबाल्ट (एनएमसी) बैटरी का था। उसके बाद लिथियम आयरन फॉस्फेट (एलएफपी) का हिस्सा 30% और निकल कोबाल्ट एल्युमिनियम ऑक्साइड (एनसीए) का 8% था। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा दशक में ईवी में लिथियम आयन बैटरी की ही मांग अधिक रहेगी। लिथियम आयन बैटरी में कैथोड लिथियम, निकेल, कोबाल्ट और मैंगनीज का मिश्रण होता है। एनोड में ग्रेफाइट का प्रयोग होता है।

एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स की जुलाई 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, लिथियम आयन ईवी बैटरी की मांग 2022 से 2030 तक सालाना 22% की दर से बढ़ने की संभावना है। चीन लिथियम आयन बैटरी का सबसे बड़ा निर्माता बना रहेगा। हालांकि 2023 से 2030 तक उसका मार्केट शेयर कुछ कम होगा, फिर भी कुल उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी 50% से अधिक होगी। यूरोप इलेक्ट्रिक वाहनों का दूसरा सबसे बड़ा बाजार होगा और उत्तरी अमेरिका तीसरा।

एसएंडपी ग्लोबल की हाल की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने 31 अक्टूबर 2023 तक 12 महीने में 14.7 लाख ईवी का निर्यात किया। मूल्य के लिहाज से यह कुल निर्यात का 34% था। वर्ष 2019 में यह सिर्फ 2% था। 2019-23 के दौरान लिथियम आयन बैटरी निर्यात में चीन का हिस्सा 44% से बढ़कर 68% हो गया। वर्ष 2030 तक 70% बैटरी और कच्चा माल उत्पादन पर चीन का नियंत्रण होगा। कोबाल्ट और ग्रेफाइट में तो 80% बाजार उसी का होगा।

यूरोपियन यूनियन ने 2035 से पेट्रोल-डीजल कारों की बिक्री बंद करने का निर्णय लिया है, इसका मतलब है कि वहां ईवी, बैटरी और लिथियम की डिमांड काफी बढ़ेगी। अमेरिका के जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक दुनिया में अभी तक 8.6 करोड़ टन लिथियम भंडार का पता चला है, लेकिन इसमें से एक-चौथाई ही ऐसा है जिसे निकालना आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा। इसलिए धरती पर लिथियम उपलब्ध होने के बावजूद 2030 तक इसकी 18 लाख टन की कमी होगी।

चीन को दरकिनार करने के लिए मिनरल सिक्युरिटी पार्टनरशिप

चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के तहत जून 2022 में मिनरल सिक्युरिटी पार्टनरशिप (एमएसपी) के गठन की घोषणा हुई थी। एक साल बाद, 22 जून 2023 को भारत इससे जुड़ा। इस समय ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, स्वीडन, नॉर्वे, यूके, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन इसके सदस्य हैं। अमेरिकी प्रशासन की तरफ से जागरण प्राइम को दी जानकारी के अनुसार, अक्टूबर 2023 में एमएसपी दुनिया में 17 मिनरल प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था। इनमें एक लिथियम, तीन ग्रेफाइट, दो निकल, एक कोबाल्ट, एक मैंगनीज, दो कॉपर और सात दुर्लभ (रेयर अर्थ) खनिजों के हैं। पांच प्रोजेक्ट अमेरिका, सात अफ्रीका, तीन यूरोप और दो एशिया-प्रशांत में हैं।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अनुसार स्वच्छ ऊर्जा के लिए जरूरी अहम खनिजों की मांग वर्ष 2040 तक चार से छह गुना बढ़ने की उम्मीद है। लिथियम जैसे कुछ मिनरल की मांग तो 42 गुना तक बढ़ सकती है। एमएसपी के सदस्य देश अर्जेंटीना, ब्राजील, कांगो, मंगोलिया, मोजाम्बिक, नामीबिया, तंजानिया और जांबिया जैसे खनिज प्रधान लेकिन गैर-सदस्य देशों में भी प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं। इस पार्टनरशिप के तहत इसी महीने 5 फरवरी को कांगो के जीकामाइन्स और जापान के जोगमेक के साथ खनिजों की खोज, उत्पादन और प्रोसेसिंग का समझौता हुआ है।

एमएसपी में क्रिटिकल मिनरल से जुड़ी चार मुख्य चुनौतियों के समाधान की कोशिश की जा रही है- 1. ग्लोबल सप्लाई चेन में विविधीकरण और स्थिरता लाना 2. सप्लाई चेन में निवेश 3. खनन, प्रोसेसिंग और रिसाइक्लिंग में पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस के उच्च मानक प्रमोट करना और 4. क्रिटिकल मिनरल की रिसाइक्लिंग बढ़ाना।

भविष्य का पेट्रोलियम है बैटरी

आज जब दुनिया सस्टेनेबल भविष्य की तरफ बढ़ रही है तो ऊर्जा के नए स्रोत के रूप में बैटरी का महत्व बढ़ता जा रहा है। हमारी हर डिवाइस बैटरी से चलने लगी है। क्या बैटरी भविष्य का पेट्रोलियम बनेगा? दुनिया कुछ इसी दिशा में बढ़ रही है। विभिन्न देशों की प्राथमिकताएं पेट्रोलियम की तरह अब बैटरी आर्म्स रेस के मुताबिक बदल रही हैं। रोचक बात यह है कि फिलहाल इस रेस में अमेरिका भी चीन पर काफी हद तक निर्भर है। इसलिए उसने 2030 तक घरेलू बैटरी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता स्थापित करने की योजना बनाई है।

सवाल है कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश, अमेरिका इसमें पीछे कैसे रह गया। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन को एहसास हो गया था कि कच्चे तेल के संसाधनों पर नियंत्रण करने में वह अमेरिका तथा अन्य देशों का मुकाबला नहीं कर सकता, इसलिए उसने भविष्य के ऊर्जा स्रोत बैटरी पर फोकस किया।

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) के सीनियर प्रोग्राम लीड ऋषभ जैन जागरण प्राइम से कहते हैं कि यह एक-दो साल में नहीं हुआ। सोलर एनर्जी का उदाहरण देते हुए वे बताते हैं, “2008 की वैश्विक मंदी से पहले, अमेरिका और यूरोप में कई सोलर मॉड्यूल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट थीं। चीन को इस इंडस्ट्री में भविष्य नजर आया। वहां सरकार ने पूंजी की उपलब्धता, कम ब्याज दर और जमीन देते हुए इस इंडस्ट्री की मदद की जिससे वहां उत्पादन लागत बहुत कम हो गई। फिर, चीन ने अमेरिका-यूरोप से पॉलि-सिलिकॉन आयात पर रोक लगा दी और कहा कि उसके बाजार में बेचने के लिए पार्ट्स वहीं बनाने पड़ेंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि अमेरिका या यूरोप में कंपनियों की उत्पादन क्षमता तो नहीं बढ़ी, लेकिन चीन की कंपनियों की क्षमता कई गुना बढ़ गई।”

एसएंडपी ग्लोबल मोबिलिटी में सप्लाई चेन मामलों की सीनियर रिसर्च एनालिस्ट दीया दास बताती हैं, “चीन ने लिथियम और अन्य बैटरी मैटेरियल में काफी निवेश किया है, खास कर खनिजों की रिफाइनिंग और बैटरी सेल तथा पैक उत्पादन में। ईवी बैटरी सप्लाई चेन में बाकी देशों से चीन 10-15 साल आगे है।” उनके मुताबिक दूसरे देशों के पीछे रहने के चार प्रमुख कारण हैं। पहला, इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी। दूसरा, भू-राजनीतिक तनाव के कारण सप्लाई चेन में बाधा और अहम खनिजों के दाम में वृद्धि। तीसरा, मानवाधिकार और पर्यावरण की चिंता। चौथा, अहम खनिजों का कुछ ही देशों में पाया जाना।

ग्लोबल टेक्नोलॉजी इंटेलिजेंस फर्म एबीआई रिसर्च (ABI Research) में ईवी सर्विसेज के प्रमुख डायलन खू (Dylan Khoo) के मुताबिक, “चीन की औद्योगिक नीति ज्यादा फोकस्ड थी। वहां की सरकार को बैटरी तथा ईवी टेक्नोलॉजी में लीडर बनने की क्षमता दिखी। उसने अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से पहले एनर्जी ट्रांजिशन में काफी निवेश किया। बैटरी सप्लाई चेन पर चीन का प्रभुत्व देश के विशाल ईवी बाजार को भी दर्शाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहन चीन में ही बिकते हैं।”

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के ‘ग्लोबल ईवी आउटलुक 2023’ के अनुसार विश्व स्तर पर 2022 में नए ईवी की संख्या में 55% इजाफा हुआ। ईवी के लिए बैटरी की मांग चीन में 70% और अमेरिका में 80% बढ़ी। चीन में बैटरी की डिमांड 312 गीगावाट, यूरोप में 127.7 गीगावाट, अमेरिका में 70.6 गीगावाट और अन्य देशों में 40.3 गीगावाट आवर थी। कुल लिथियम आयन बैटरी की मांग 2021 के 330 गीगावाट आवर की तुलना में 2022 में 65% बढ़कर 550 गीगावाट हो गई। बैटरी के साथ अहम खनिजों की मांग भी बढ़ी। 2022 में 60% लिथियम, 30% कोबाल्ट और 10% निकल की मांग ईवी के लिए थी। 2017 में यह अनुपात क्रमशः 15%, 10% और 2% था।

चीन पर निर्भरता के खतरे

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने अक्टूबर 2023 में कहा था कि दुनिया के 80% लिथियम भंडार पर एक देश का नियंत्रण है और 88% लिथियम प्रोसेसिंग एक ही देश में होती है। एक देश पर निर्भरता के खतरे और सप्लाई चेन के विस्तार पर डायलन खू कहते हैं, “चीन पर निर्भरता स्पष्ट रूप से अमेरिकी और यूरोपीय इंडस्ट्री के लिए जोखिम है। स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव के लिए बैटरी आवश्यक हैं। यह ऑटोमोटिव इंडस्ट्री के लिए तो जरूरी है ही, रिन्यूएबल बिजली को बढ़ावा देने के लिए भी इसकी जरूरत है। रिन्यूएबल स्रोतों से उत्पन्न बिजली को बैटरी में स्टोर किया जा सकता है।”

“जोखिम कई तरह से है। चीन निर्यात को नियंत्रित कर सकता है। पश्चिमी देशों के सेमीकंडक्टर निर्यात पर अंकुश लगाने के जवाब में उसने उन देशों को गैलियम, जर्मेनियम और ग्रेफाइट के निर्यात पर अंकुश लगा दिया जिससे उन देशों के बैटरी निर्माताओं का बिजनेस प्रभावित हुआ। एक और जोखिम है कि अगर इन खनिजों की सप्लाई या प्रोसेसिंग किसी तरह बाधित होती है तो चीन निर्यात रोक कर घरेलू इंडस्ट्री को प्राथमिकता देगा।”

एसएंडपी ग्लोबल के अनुसार, दुनिया में 2027 में लिथियम की किल्लत होने की उम्मीद है। तब चीन पर निर्भरता वहां के निर्माताओं को फायदा पहुंचाएगी। चीन ने हाल ही गैलियम, जर्मेनियम और ग्रेफाइट निर्यात कम करने का फैसला किया है। इससे लिथियम, कोबाल्ट और निकल के लिए चीन पर निर्भर अमेरिकी ईवी निर्माताओं की मुश्किलें बढ़ेंगी। यूरोपियन कमीशन ने ईवी इंडस्ट्री को चीन की सब्सिडी की जांच करने की घोषणा की है। ईयू वाहनों के मामले में चीन को नेट एक्सपोर्टर था, अब यह नेट इंपोर्टर बन गया है। इसमें बड़ा हिस्सा ईवी का है। अगर ईयू चाइनीज ईवी पर टैरिफ लगाता है, तो जवाब में चीन भी बैटरी और बैटरी मटेरियल का निर्यात रोक सकता है।

डायलन के अनुसार, बैटरी सप्लाई चेन स्थापित करने के लिए अमेरिकी सरकार इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट और बाइपार्टीजन इन्फ्रास्ट्रक्चर लॉ के जरिए निवेश कर रही है। वह अहम खनिजों के घरेलू उत्पादन पर सब्सिडी दे रही है। इसके अलावा खनिज उत्पादन और रिफाइनिंग की नई फैसिलिटी विकसित करने के लिए अरबों डॉलर के ग्रांट भी दे रही है। उन्होंने बताया कि उत्तरी अमेरिका में बैटरी सप्लाई चेन विकसित करने में कनाडा भी बड़ी भूमिका निभाएगा। उसके पास निकल, लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट और मैंगनीज जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में हैं। हालांकि घरेलू उत्पादन को इन्सेंटिव देने में यूरोपियन यूनियन उतनी सक्रिय नहीं है। वह ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ लाने की योजना बना रही है, जिसमें खनिजों की न्यूनतम घरेलू मात्रा का प्रावधान होगा। यूरोपियन यूनियन का तरीका सफल होने और मजबूत घरेलू सप्लाई चेन विकसित होने की उम्मीद कम है।

दीया कहती हैं, “चीन पर दूसरे देशों की अत्यधिक निर्भरता चीन को भू-राजनीतिक बढ़त देती है। विभिन्न देशों और इंडस्ट्री को चीन से इन धातुओं की सप्लाई बाधित हो सकती है। अपने यहां ईवी मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने वाले देशों को कच्चे माल, खनिज की प्रोसेसिंग और बैटरी उत्पादन के लिए चीन पर और अधिक निर्भर होना पड़ेगा। एक देश पर निर्भरता से ग्लोबल मार्केट में इनोवेशन और प्रतिस्पर्धा बाधित होगी तथा प्रदूषण भी बढ़ेगा।”

क्या ओपेक जैसा गुट बनेगा

तेल उत्पादक देशों ने कच्चे तेल के बाजार को अपने हिसाब से चलाने के लिए 1960 में ओपेक संगठन बनाया था। नई स्थिति यह है कि सबसे अधिक लिथियम रिजर्व वाले देश चिली ने कहा है कि वह लिथियम माइनिंग इंडस्ट्री का राष्ट्रीयकरण करने जा रहा है। मेक्सिको 2020 में ही अपने लिथियम भंडार का राष्ट्रीयकरण कर चुका है।

क्या ओपेक की तरह बैटरी सप्लाई चेन में भी कोई संगठन बनने की संभावना दिखती है, यह पूछने पर ऋषभ कहते हैं, मिनरल्स की स्थिति ऑयल से बहुत अलग है। इसकी प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी बहुत जटिल होती है और इसे रिकवर किया जा सकता है। आयात करने वाले प्रमुख देशों के पास मिनरल्स खरीदने के दूसरे विकल्प मौजूद हैं। जैसे, कोबाल्ट बहुत महंगा है और उसकी उपलब्धता की भी समस्या है। इसलिए, बैटरी में कोबाल्ट की मात्रा कम हो रही है। बिना कोबाल्ट वाली बैटरी भी बनाई जा रही है। अब ऐसी टेक्नोलॉजी भी आ रही हैं जिनमें क्रिटिकल मिनरल्स या रेयर अर्थ (दुर्लभ) खनिजों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। तेल के मामले में ऐसा नहीं था, सभी को उसकी जरूरत थी।

भविष्य में इलेक्ट्रिक वाहनों और ग्रिड पावर सप्लाई के लिए बैटरी की डिमांड कई गुना बढ़ेगी। डायलन खू कहते हैं, इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ने के कारण सबसे अधिक लिथियम की मांग बढ़ेगी। वर्ष 2023 से 2030 के दौरान दुनिया में ईवी बैटरी में लिथियम की खपत चार गुना से अधिक हो जाने का अनुमान है। हालांकि ईवी की खातिर सप्लाई के लिए दुनिया में पर्याप्त लिथियम है, लेकिन मांग पूरी करने के लिए नए प्रोजेक्ट शुरू करना भी जरूरी है। इन्हें लगाना खर्चीला तो है ही, इसमें वर्षों लग जाते हैं। लिथियम की सतत आपूर्ति के लिए टेक्नोलॉजी के विकास की आवश्यकता है।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार, ईवी और एनर्जी ट्रांजिशन में बढ़ती मांग को देखते हुए अहम खनिजों का खनन और प्रोसेसिंग क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। बैटरी में इनका प्रयोग कम करने की टेक्नोलॉजी विकसित करना भी सप्लाई चेन के लिए जरूरी है। इसके लिए तीन स्तर पर प्रयास होने चाहिए- एडवांस बैटरी टेक्नोलॉजी जिसमें क्रिटिकल मैटेरियल की जरूरत कम पड़े, वाहनों के नए मॉडल डेवलप किए जाएं और बैटरी की रिसाइक्लिंग बढ़ाई जाए।

अहम खनिजों का 378 अरब डॉलर का सालाना व्यापार

पवन ऊर्जा टर्बाइन से लेकर इलेक्ट्रिक कार तक स्वच्छ ऊर्जा टेक्नोलॉजी में क्रिटिकल मिनरल्स की बड़ी अहम भूमिका है। विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) की 10 जनवरी 2024 की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 20 वर्षों के दौरान ऊर्जा उत्पादन से संबंधित अहम खनिजों का सालाना व्यापार 53 अरब डॉलर से बढ़कर 378 अरब डॉलर हो गया है।

इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी बनाने के लिए इन खनिजों की मांग ज्यादा है। कार तथा बड़े वाहनों की हर बैटरी में 200 किलो तक अहम खनिजों की जरूरत पड़ती है। कोबाल्ट की 70% मांग बैटरी सेक्टर में ही है। इलेक्ट्रोलाइजर की जरूरत ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन में है, जिसे बनाने के लिए दुनिया की दो सबसे दुर्लभ और महंगी धातुओं प्लैटिनम और इरीडियम की आवश्यकता होती है।

अहम खनिजों का व्यापार पिछले दो दशक में औसतन 10% सालाना की दर से बढ़ा है। आयात की वैल्यू बीते 5 वर्षों के दौरान लगभग दोगुनी हो गई है। यह 2017 में 200 अरब डॉलर थी और 2022 में 378 डॉलर हो गई। प्लैटिनम ग्रुप मेटल (पीजीएम) जैसे रोडियम, इरीडियम, रूथेनियम और ओसमियम के दाम ज्यादा बढ़े हैं। इनमें सालाना वृद्धि की दर 72% तक है।

चीन दुनिया का 60% और जापान 12% कॉपर आयात करता है। वर्ष 2022 में चीन क्रिटिकल मिनरल्स का सबसे बड़ा आयतक था। उसने ग्लोबल ट्रेड का 33% आयात किया। उसके बाद 16% यूरोपियन यूनियन ने और 11%-11% जापान तथा अमेरिका ने आयात किया। चिली दुनिया का सबसे बड़ा क्रिटिकल मिनरल निर्यातक है। वर्ष 2022 में ग्लोबल एक्सपोर्ट में इसकी 11% हिस्सेदारी थी। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका की 10%, ऑस्ट्रेलिया, पेरू और रूस की 6%-6% थी। चिली दुनिया का सबसे अधिक, एक-चौथाई से अधिक कॉपर निर्यात करता है। उसके बाद पेरू 19% और इंडोनेशिया 9% हैं। चीन दुनिया का 70% ग्रेफाइट का खनन करता है और 100% प्रोसेस्ड ग्रेफाइट का उत्पादन करता है।

अमेरिकी चुनाव के नतीजे डालेंगे इंडस्ट्री पर असर

अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव ऑटोमोबाइल और बैटरी इंडस्ट्री के लिए काफी अहम हो गया है, क्योंकि इसके नतीजे पर इंडस्ट्री की दिशा तय होगी। मौजूदा बाइडेन प्रशासन ने बैटरी और ईवी मैन्युफैक्चरिंग के लिए 2022 में 100 अरब डॉलर की पहल शुरू की।

एसएंडपी ग्लोबल मोबिलिटी का अनुमान है कि अगर राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी जीतती है तो वह इन कानूनों में बदलाव कर सकती है। सरकारी फंडिंग और सब्सिडी खत्म भी हो सकती है। टैक्स इन्सेंटिव कम होने पर वाहनों के दाम बढ़ेंगे और टेस्ला जैसी पूरी तरह इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनियों के लिए मांग कम हो सकती है। जनरल मोटर्स, फोक्सवैगन और ह्युंडई मोटर ग्रुप भी ईवी मैन्युफैक्चरिंग में आगे बढ़ने की रफ्तार घटा सकती हैं। बीएमडब्लू और मर्सिडीज बेंज फ्लेक्सिबल प्लेटफॉर्म विकसित कर रही हैं जिस पर पेट्रोल-डीजल इंजन वाली गाड़ियों के साथ ईवी भी बनाई जा सकें। रेगुलेशन में बदलाव के मुताबिक कंपनियां अपने मॉडल में भी तत्काल बदलाव कर सकेंगी।

एसएंडपी के अनुसार, ग्लोबल ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए ईवी में ट्रांजिशन बड़ा जोखिम है। इस लिहाज से 2024 का राष्ट्रपति चुनाव अमेरिका की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए महत्वपूर्ण टर्निंग प्वाइंट हो सकता है। दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी में बड़ा बदलाव होने पर अन्य देशों पर उसका असर होना तय है।